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नागर (नाग) पंचमि - कार्य के पीछे छुपे विचार


भूमिका

नाग पंचमि के त्योहार के दिन लोग बांबी (चींटियों का ढेरा) के निकट जा कर पूजा करते हैं और दूध को निवेदन करते हैं, शायद यह निवेदन उस बांबी में रहने वाले सर्प के लि‌ए होता हो। कुछ लोग तो सपेरों को बुला कर, सांप को बाहर आमंत्रित करके, उस बेचारे सांप पर दूध बहाते हैं। क्या यह को‌ई तरीका है, नाग पंचमि मनाने का? बांबी में रहने वाले सर्प पर दूध बहाने में क्या आध्यात्मिकता हो सकती है?

नागर (नाग) पंचमि के गूढ़ाक्षरों की स्पष्टता


किसी भी वैदिक त्योहार की आधारित आध्यात्मिकता को समझने में प्रतीकवाद और अकंज्योतिष महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले "नगर" शब्द पर आलोचन करें। संस्कृत शब्दों की खूबसूरती उनके शब्द-साधन में है। हम शब्द के विभाजन करके, संदर्भ अनुसार उसके मूल अर्थ को समझ सकते हैं। इस शब्द का एक विभाजन करने का तरीका है "न" + "ग" + "र"। "न" का अर्थ है "नहिं"। "ग" क अर्थ है "गति" याने के हमारी अतिंम अवस्था जो मोक्ष है। "र" माने "रमयते" याने कि आनंद। "ग" और "र" जोडने से अर्थ हु‌आ "मोक्ष के ओर यात्रा करने में आनंद पाना"। जब इसके आरंभ में "न" जोड दें तो यह बन जाता है "जहां मोक्ष या मुक्ति के ओर जाने में आनंद नहीं मिलता है, वह नगर है"। इसीलि‌ए जब हम अपने नगर वासन में मग्न हैं, हम में आध्यात्मिकता बहुत कम है। अधिकांश लोग, जब नगर से दूर, शांत जगह जाते हैं तो आराम और शांति का अनुभव करते हैं और आध्यात्मिकता की ओर ध्यान देते हैं। सबसे पहले वे मानसिक शांति का अनुभव करते हैं और फिर श्रवण (सुनना/पढना) और मनन (चिंतन) के ओर ज्यादा ध्यान देते हैं।

सर्पेंटा‌इन ऊर्जा - आध्यात्मिक प्रतीकवाद


एक नगर को देखि‌ए। वहाँ बहुमत लोग हैं जो रोज कठोर परिश्रम करते हैं। यह सैकडों लोग क‌ई तरह से नगर का निर्माण कर रहे हैं। अब एक बांबी की तरफ़ देखें।


सैकडों चींटियाँ कठोर परिश्रम करके बांबी बनाती हैं। किंतु जब वह बन जाता है तो साँप उस में जा कर बस जाते हैं। यहाँ एक महत्वपूर्ण अवलोकन है। जब सैकडों लोग नगर को बनाने मे मग्न हैं, प्रश्न यह है कि उस नगर में क्या बस जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि नगर में सचमुच सर्प बसने लगते हैं। अब प्रतीकवाद को समझना है। वैदिक रिवाज़ में सर्प एक तरह की ऊर्जा की प्रतीक है। तो यह किस तरह की ऊर्जा है जो नगर में आकर बस जाती है? इसे जानने के लि‌ए सर्प पर विचार करें। ज्ञानेंद्रियॊं में सर्प कर्ण (कान) रहित है। यह सुनने या पढने (याने आध्यात्मिकता को समझने) के काबिल ना होने का प्रतीक है, जो आध्यात्मिक विकास का पहला कदम है। कर्मेंद्रियॊं में सर्प टांग रहित है। इसी कारण वह आसानी से एक जगह से दूसरी जगह चल नहीं पाता है। यह अतंर्गत आध्यात्मिक विकास में प्रगती ना पाने का प्रतीक है।

सर्प का चाल टेढ़ा-मेढ़ा है। इस क्षण इस दिशा में है तो दूसरे क्षण उस दिशा में होगा। यह स्पष्टता और फ़ोकस में निरंतर परिवर्तन होने का संकेत है। सर्प चमडा छादन भी करता है। हम सब नगर वासी इससे सम्बन्धित हैं। हम हर रोज कठोर परिश्रम करते हैं ताकि हमारी कामना‌ऎं पूरी हों। जब एक कामना पूरी हो जाती है तो दूसरी कामना पैदा हो जाती है। तो यह सिलसिला चलता रहता है, दिन ब दिन, जैसे कामना‌एं बढतीं जातीं हैं। कुछ समय बाद, इस पर आलोचन करने पर, यह अहसास होता है कि हमने इतने दिन क‌ई तुच्छ चीजों पर ऊर्जा बेकार की है, और फिर हम किसी और चीज के तरफ़ यात्रा शुरु कर देते हैं। अतं में जब हम अपने जीवन पर आलोचना करते हैं तो यह अहसास होता है कि सारा जीवन बहुत जल्दी बीत गया है। जीवन के सच्चे उद्देश्य को समझने के लि‌ए हम तरसते हैं। यही है सर्प के चमडी छादने का और टेढे-मेढे चलने का प्रतीकवाद। नगर मे रहने वाले क‌ई लोग अपने जीवन में इस सर्प ऊर्जा का प्रभाव का अहसास करते हैं।


नाग देवता को क्यों दूध दें

वैदिक शास्त्र कहते हैं कि इस विश्व में हर चीज एक देवता शक्ति पर नियन्त्रित होती है, जो खुद भगवान पर नियन्त्रित है। नाग देवता इस सर्पेंटा‌इन ऊर्जा पर नियन्त्रण रखने वाली देवता शक्ती है।


वेदों में गौ वेद माता की संकेत है। गाय का दूध शुद्ध वैदिक आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। इस त्योहार में भक्त नाग देवता को दूध का निवेदन करते हैं, जो वैदिक ज्ञान का संकेत है, इस उम्मीद से कि वह देवता शक्ती के आशिर्वाद से हममें सर्पेंटा‌इन ऊर्जा कम हो सकती है।

Note: This article was compiled by Dr. Vanditha Mukund, from an audio recording of a talk on the same topic by Prof. P.R. Mukund. © 2018 Prof. PR Mukund

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